नगरीय निकाय चुनाव के लिए रायगढ़ में नगर निगम के 48 वार्डों के आरक्षण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब सबकी निगाहें महापौर पद के लिए होने वाले आरक्षण पर टिकी हुई हैं। वर्तमान में रायगढ़ नगर निगम में महापौर की सीट एसटी महिला के लिए आरक्षित है मगर वार्डों के आरक्षण में सामने आये आंकड़े के बाद इस बार महापौर के सीट आरक्षण में भी बदलाव होने की चर्चा होने लगी है। अगर ऐसा होता है कि रायगढ़ नगर निगम के चुनाव में एक बड़ा बदलाव भी देखने को मिल सकता है। लिहाजा राजनैतिक दल भी इसको लेकर विश्लेषण करने में जुट गए हैँ.
इस बार नगरीय निकाय चुनावों में महापौर और अध्यक्ष के लिए प्रत्यक्ष चुनाव होगा। इससे पहले सभी नगर पंचायत और नगर पालिका में पार्षद मिलकर अध्यक्ष और नगर पालिक निगम में महापौर का चुनाव करते थे मगर इस बार ऐसा नहीं होगा। इस बार सीधे जनता तय करेगी कि उनका अध्यक्ष और महापौर कौन होगा। लिहाजा कांग्रेस और भाजपा दोनों राजनैतिक दलों के लिए यह चुनाव काफी मायने रखता है। शहर के सियासत की शतरंज में कौन से मोहरे कहां बैठेंगे यह तो तय हो गया है मगर बादशाह कौन होगा इस पर सस्पेंस अभी बाकी है। रायगढ़ नगर निगम चुनाव के लिए वार्डों का आरक्षण तय होने के बाद अब राजनैतिक गलियारों में बस इसी पर चर्चा हो रही है। कांग्रेस और भाजपा दोनों की राजनैतिक दलों को इसका बेसब्री से इंतजार है क्योंकि बादशाह तय होने के बाद ही सियासत के शतरंज के इस खेल के लिए रणनीति तय की जायेगी और शह-मात का खेल शुरू होगा।
फिलहाल महापौर यदि का आरक्षण सामान्य-ओबासी और एससीएसटी होगा या फिर महिला इसे लेकर सभी निकायों में चर्चा कई दिनों से हो रही है। राज्य सरकार द्वारा कैबिनेट में महापौर और अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय लेने के बाद सबसे ज्यादा चर्चा रायगढ़ नगर निगम को लेकर हो रही है। कांग्रेस और भाजपा में सबसे पहले महापौर की सीट के आरक्षण को लेकर हो रही है। सब अपने-अपने स्तर पर कयास लगा रहे हैं। कोई कह रहा है इस बार सामान्य हो सकता है, तो कोई कह रहा है इस बार ओबीसी होगा तो कोई महिला के लिए आरक्षित होने की बात कर रहा है। सामान्य होने पर सामान्य वर्ग के लोग दावेदार टिकट के लिए किस प्रकार से फील्डिंग करनी है इस पर गुणा भाग में लगे हुए हैं। वहीं ओबीसी होने पर ओबीसी वर्ग के भाजपा-कांग्रेस के नेता अपने समीकरण बनाने में लगे हुए है। वहीं महिला होने पर राजनीतिक गलियारे में अलग-अलग नाम को लेकर भी चर्चा करने लगे हैं। कुल मिलाकर अभी सिर्फ राजनीतिक जुगाली करने में लगे हुए हैं।
हालांकि अभी वार्डों के लिए तय किये गए आरक्षण के बाद शहर में नगर निगम चुनाव को लेकर सुगबुगाहत शुरू हो गयी है, ऐसे पार्षद जिनकी सीट पर आरक्षण का कोई असर नहीं पड़ा है, वो एक बार फिर से अपनी सीट पर कब्ज़ा ज़माने की जुगत में जनता जनार्दन के बीच पहुंचने लगे हैँ तो ऐसे पार्षद जिनके सीट पर आरक्षण की कैची चल गई है वे दूसरे वार्डों में अपनी संभावनाएं तलाश करने में जुट गए हैँ. चूंकि इस बार के हुए आरक्षण में नगर निगम की 48 में से 24 सीट जनरल याने सामान्य हो गयी है जबकि 11 ओबीसी और 8 एससी और 5 सीटें एसटी के खाते में चली गई है लिहाजा इस बार के चुनाव में सामान्य और ओबीसी सीट को लेकर भी काफ़ी घमासान मचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है. इन वार्डों में अभी से कई दावेदार सामने आने लगे हैँ और अपने पक्ष में माहौल भी बनाने लगे है ताकि चुनाव की घोषणा होने और टिकट मिलने के बाद उन्हें मशक्कत न करनी पड़े.